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कविता का अलाव

मष्तिष्क में छाये धुंध को हटाने को 
खुद को कविता-लेखन की पटरी पर लाने को 

ये प्रस्तुति कविता रुपी अलाव का हवन है 
आखिरकार शरीर भी कोशिकाओं का भवन है 

धुंध जैसे जल का एक स्वरुप है 
मानव अंग भी कोशिकाओं का भिन्न भिन्न प्रारूप है 

इस कविता को तर्क-वितर्क के तराजू पर मत तौलिये 

क्योंकि बहुत दिन के उपरान्त ये एक अभिनव प्रयास है 
इस कर्मठ के पूर्व अगणित दिवसों का अवकाश है 

रोज़मर्रा घटित होती घटनाएं, लेखन का अवसर देती हैं 
ठीक समय पर न सचेत हों, तो ज़िन्दगी भी 'कह कर लेती है'

इस लेख में आप अंग्रेजी का मिश्रण कम पाएंगे 
और German (तृतीय भाषा) खोजने के लिए CBI का भूत लगाएंगे 

चूंकि ये खाटी हिंदी में तैयार देशी व्यंजन है 
इसका भाव वही समझे जो 'Pure Lit Vegan' है 

आपसे एक गुज़ारिश है 
एक छोटी सी शिफारिश है 

ये कविता एक लय-ताल की बहती धारा है 
इसका मूल 'Go with the flow' का प्रचलित नारा है 

फिर भी हम भी कितना भी फ्लो में जाते हैं 
अपना रास्ता अपने हाथ से ही बनाते हैं 

योगः कर्मषु कौशलम् हमारी डुअल डिग्री पंचवर्षीय योजना की सीख है 
कर्म पथ का प्रणेता बन चलें, वही रास्ता ठीक है 

ये छुट्टियां भी अतः अवलोकन का अवसर दे जाती हैं   
​कभी चूड़ीवाले व सिटी-माल के अंतर्विरोध को दिखलाती है 

कविता एक माध्यम है, नव-पथ प्रशस्त होने का 
नव-दिवस के सूर्य जागरण का व एक सूर्य के अस्त होने का  ​

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