नव -निर्माण
भार - विहीन
है धड़ निरीह
मन चंचल 'कब ?'
सोच रहा |
अंकुर फूटे
नव -सृजन गमन को
कुछ कर डालो अब बोल रहा |
हो धरा सृजित
कर्म -कलुष विजित
शुभ प्रहर रहे,हो अच्छा वर्ष
जन-जीवन में फैले उत्कर्ष |
नव-वर्ष हो सिंचित प्रेम,पर्व और आशा से
मैं रहूँ कृतज्ञ
है धड़ निरीह
मन चंचल 'कब ?'
सोच रहा |
अंकुर फूटे
नव -सृजन गमन को
कुछ कर डालो अब बोल रहा |
हो धरा सृजित
कर्म -कलुष विजित
शुभ प्रहर रहे,हो अच्छा वर्ष
जन-जीवन में फैले उत्कर्ष |
नव-वर्ष हो सिंचित प्रेम,पर्व और आशा से
मैं रहूँ कृतज्ञ
न नाता हो किंचित घोर निराशा से |
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