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Showing posts from January, 2011

नव -निर्माण

नव -निर्माण भार - विहीन है धड़ निरीह मन चंचल 'कब ?' सोच रहा | अंकुर फूटे नव -सृजन गमन को कुछ कर डालो अब बोल रहा | हो धरा सृजित कर्म -कलुष विजित शुभ प्रहर रहे,हो अच्छा वर्ष जन-जीवन में फैले उत्कर्ष | नव-वर्ष हो सिंचित प्रेम,पर्व और आशा से मैं  रहूँ कृतज्ञ  न  नाता  हो किंचित घोर निराशा से |