Skip to main content

Posts

Showing posts from April, 2012

प्रकाश का अवकाश

प्रकाश का अवकाश  है धरी अधर के नयनों पर मिटती बुझती,  अब प्यास यहाँ  वाचाल  पंथ के सपनो पर झुरमुट हैं बस , अवकाश कहाँ ? निर्झर भावों का वेग बढ़ा पुलकित नयनों के सागर में  आवेश चढ़ा, है बढ़ी भुजा  इस द्वेष पंथ के गागर में  उफन-उछाल है दिखी जहाँ, मै वही प्रखर अधिवक्ता हूँ  दिनकर की सुई है ठिगी नही  अनंत काल, चल सकता हूँ  चिट्ठी तुम ढोंग की अब बांचों  बन विघट-मयूर ,जितना नाचो  अब काया-विस्तार, यहाँ  देखो  गौरव का तन  अभिलाषी मन  तन आसीन, है शिरा झुकी  सज्जन मन के अभिनन्दन में  फैले प्रकाश, हो सत्य प्रसार  इस जग के नंदन वन में !

C.G. सम्मलेन में पंजी प्रभु

Inter IIT C.G. सम्मलेन था K.G.P. में उद्वेलन था | देशभर के सारे एक से एक पंजी, छग्गी,नहली..... पधारे जिनकी सोच अलग ,अलग विचार था उनमे K.G.P.  पंजी  का जुदा ही व्यवहार था | जब  'नहली'   C.G. व्यवस्था  के परिणाम पर अपनी  सहमति जता रहे थे तब पंजी देव मुस्कुराये और मुस्कुराये ही जा रहे थे | जब सबकी नज़रें उनको घूर -घूर के देखने लगीं तब 'छग्गी' जो उन्हें सबसे करीब से था जानता बोला इस रहस्यमयी मुस्कान को सिर्फ वही है पहचानता जो  Mid-sem,End-sem  के तूफ़ान को शीतलता से वार दे प्रोफ़ेसर की ललकार हो या Class- test  का प्रहार हो Peace मरता रहे दिन- महीने  तार दे |  है घड़ी अब सीख लो निर्भीकता की भीख लो | है अटल खड़ा वो कबसे First -year की C.G. लगी है जबसे | समय है समझो ! सुख -दुःख की बाट है दुनिया मेल मिलाप से बढ़ता प्यार खैर करो जनता पे प्यारे 'Marks' को क्यूँ  'absolute' बना देते हो यार !!!

केंद्र

ये जगमंडल का है प्रभाव शोषित है तन मन का प्रयाग है नही केंद्र, पथ भ्रष्ट बहाव ये जगमंडल  का है प्रभाव अर्जित कर ऊर्जा... इतनी मन में तू ही हो नाविक, तेरी हो नाव ये जगमंडल का है प्रभाव धार बहे , जो कहना इक बार कहे ! सृजित करो ! उलटी धारा , अब ! बहुत बही बढ़ कर श्रृष्टि तुम विजित करो !

कल्पतरु

अब चाणक्य की शिखा नही न 'कल्पतरु' का सेज है पुष्प वृन्द के भ्रमर यहाँ न शाश्वत सत्य का तेज है !! मूर्त भाव का पूजन है दंभ भाव का गर्जन है शीश यहाँ ...आशीष नहीं मुंड यहाँ ..मानव मन है कहीं !! बस एक हस्त ही उठता है चाहें सहस्त्र प्रलाप करें !! मुख सूर्य-दीप्ति ही रखता है जग झूठा क्यूँ न संताप करे !! 'कल्पतरु' बन विकट समय भी.. न्याय नीति की छाँव करूं सुयश प्रभा हो सत्य भाव की अग्नि दहन कर दंभ हरूँ !!!