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केंद्र

ये जगमंडल का है प्रभाव
शोषित है तन मन का प्रयाग
है नही केंद्र, पथ भ्रष्ट बहाव
ये जगमंडल  का है प्रभाव
अर्जित कर ऊर्जा... इतनी मन में
तू ही हो नाविक, तेरी हो नाव
ये जगमंडल का है प्रभाव
धार बहे , जो कहना इक बार कहे !
सृजित करो !
उलटी धारा , अब ! बहुत बही
बढ़ कर श्रृष्टि तुम विजित करो !

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रूबरू

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कविता का अलाव

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Micros of a society

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