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बिन माया

तुमने जिस पते को चाहा, वहां धन की माया न थी,
जिस पथ पर तुम चले अनिश्चित पर था,
कदम का क्रम आगे बढ़ता गया,
रास्ता तलाशे एक नया,
जिसपे भले कांटे ही बंधे थे,
बिन काँटों के रास्ते, ऐसे पते कब सधे थे?

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कविता का अलाव

मष्तिष्क में छाये धुंध को हटाने को  खुद को कविता-लेखन की पटरी पर लाने को  ये प्रस्तुति कविता रुपी अलाव का हवन है  आखिरकार शरीर भी कोशिकाओं का भवन है  धुंध जैसे जल का एक स्वरुप है  मानव अंग भी कोशिकाओं का भिन्न भिन्न प्रारूप है  इस कविता को तर्क-वितर्क के तराजू पर मत तौलिये  क्योंकि बहुत दिन के उपरान्त ये एक अभिनव प्रयास है  इस कर्मठ के पूर्व अगणित दिवसों का अवकाश है  रोज़मर्रा घटित होती घटनाएं, लेखन का अवसर देती हैं  ठीक समय पर न सचेत हों, तो ज़िन्दगी भी 'कह कर लेती है' इस लेख में आप अंग्रेजी का मिश्रण कम पाएंगे  और German (तृतीय भाषा) खोजने के लिए CBI का भूत लगाएंगे  चूंकि ये खाटी हिंदी में तैयार देशी व्यंजन है  इसका भाव वही समझे जो 'Pure Lit Vegan' है  आपसे एक गुज़ारिश है  एक छोटी सी शिफारिश है  ये कविता एक लय-ताल की बहती धारा है  इसका मूल 'Go with the flow' का प्रचलित नारा है  फिर भी हम भी कितना भी फ्लो में जाते हैं  अपना रास्ता अपने हाथ से ही बनाते हैं  योगः कर्मषु कौशलम् हमारी डुअल डिग्री पंचवर

रूबरू

ये शायर जब भी लिखता है, शब्दों के मोती पीरो के लिखता है  इस मोती के गहने की कीमत बेमोल है बाजारों में, जिस हुस्न की ये फरमाइश हुयी, उस नूर में चाँद का अक्स दिखता है  । कहाँ मियां किस ख्याल में हो, किसने कहा कि ये जनरेशन 'कबीर' ढूंढती है  अब तो बस एक खींची हुई लकीर ढूंढती है !  #TikkaBhaat टाटा बिड़ला के कारखाने से कमाए पैसे मकान बनाते हैं,  केजीपी आओ, यहाँ हम इंसान बनाते हैं ! #Convo2013

Micros of a society

'Home is where your 'wi-fi' connects automatically' ये 'wi - fi ' है संगम मन में निर्मित भाव का  निर्झर समय की धारा  में बह कर, सुगठित एक स्वभाव का  एक जुझारूपन हिम्मत का नाविक , जो परिणाम है  जीवन गत देखे-झेले अभाव का  हाँ ये अभाव ही तो मार्ग है, एक नए शहर में  एक नए घर के नव निर्माण का, एक नए दिन के नव पहर में  न बुझने वाले अलाव का  ये अभाव स्टैंड नहीं है पोजीशन ऑफ़ वीकनेस का  पर है ये साहस, जिब्राल्टरी समस्या की उपस्तिथि का स्वीकारना  फिर नियति के समक्ष जोश भरना! है  Home जो अब 'वर्क फ्रॉम होम ' का स्थल  कर्म की ये स्थली, जिसपे बढ़ना चाहे निश्छल ! इस होम के सदस्य जो हमारे मार्ग आते हैं  कुछ समय रहते फिर चले जाते हैं  इक नदी की धार जैसे छोटी छोटी नदियों का संगम बनती है, ये फ्लैमटेस की धारा भी, अपनी एक कहानी कहती है! इस रस्ते का राहगीर, एक कोने में अपनी बटिया रखता है, हर कोना फिर घर का , एक नयी कहानी कहता है, फि ये घर, एक नव निर्मित सराय सी कहानी गढ़ता है! इस सराय के भी अनेक से पात्र हैं, हैं