जी नहीं मै महानगर प्रजाति का नहीं
कुछ रूक कर वो सोचे
फिर बोले - कभी ऐसा कुछ सुना नही कहीं
फिर अकादमिक प्रजाति के बारे में पूछे
'तो आप आई आई टी से हैं'
इस जाति - प्रजाति के वार्तालाप में
इसी मध्य टी वी पर फैले 'श्रीशांत-दत्त' के प्रलाप में
मैंने उन्हें लखनऊ की याद दिलाई
यही वो स्थान है जहाँ से मेरा घर निकट है
ये देखिये मेरी यात्रा का वातानुकूलित द्वितीय श्रेणी का टिकट है
विषय परिवर्तन पर बंगलौर की बारी आई
इस चर्चा पर उन्हें भी खुमारी छाई
चंद पल में 'बंगलुरू' और 'बंगलौर' उत्तर - दक्षिण ध्रुव से प्रतीत होने लगे
भीष्म - अवतार में उनके कथन ग्रंथ गढ़ने लगे
बगल वाले उठाके 'मीनू' पढने लगे
हम भी सदाचार का भ्रम तोड़ आगे बढ़ने लगे .....
To be Continued...
# Bangalore Diary
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