नव -निर्माण   भार - विहीन  है धड़ निरीह  मन चंचल 'कब ?'  सोच रहा |   अंकुर फूटे  नव -सृजन गमन को  कुछ कर डालो अब बोल रहा |   हो धरा सृजित  कर्म -कलुष विजित शुभ प्रहर रहे,हो अच्छा वर्ष  जन-जीवन में फैले उत्कर्ष |   नव-वर्ष हो सिंचित प्रेम,पर्व और आशा से  मैं  रहूँ कृतज्ञ    न  नाता  हो किंचित घोर निराशा से |