जब धरा है रुक सी गयी, इस विधान की मरम्मत में, भविष्य हमसे पूछ रहा, क्या रहे वजूद तेरा, है कितनी ताकत तेरी हिम्मत में धैर्य रखना, दिन अगले ख़ुशी के होंगे क्या हुआ, जो थम गयी है, आज इस पल की घडी भला सोचना, सपने पूरे हर किसी के होंगे है ये अवसर, नयी धूप की ऊर्जा से नव-निर्माण का आज थम के, सहस्त्र पद चलें, इस दृढ निश्चयी अहसास का ये जो साया कोरोना का, छा गया है धुंध बनकर हम भले हो अकेले, ये छंटेगा, सोचें गर झुण्ड बनकर